संस्कृति की बागडोर से शीर्ष पर तिरंगा


जी-20 के सदस्यों के बीच गूंजती है भारतीय संस्कृति। वर्षों से यहां का स्वाद, संगीत और साहित्य विश्व में अपनी पैठ जमाए है तो वहीं कलाएं दर्ज हैं गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में, बता रहे हैं संदीप भूतोड़िया...

 

आज सतत विकास और समृद्धि के लिए संस्कृति को सहायक माना जाने लगा है। चूंकि वित्त और अर्थव्यवस्था जी-20 के उद्देश्यों का अभिन्न अंग हैं, ऐसे में भारत इन जी-20 सदस्यों का एक ऐसा भागीदार है जो अपनी संस्कृति के जरिए समूह के शेष राष्ट्रों व पूरी दुनिया को एक सूत्र में बांधने में मुख्य स्थान रखता है। अब चूंकि भारत जी-20 अध्यक्षता कर रहा है तो संस्कृति कार्य समूह ने ‘कल्चर यूनाइट्स आल’ कैंपेन लांच किया है जो भारत में विविध संस्कृतियों और समुदायों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर आधारित बहुपक्षवाद में अटूट विश्वास को उजागर करने को दर्शाता है।

स्वाद ऐसा जो हर दिल को भाए

आज अगर चिकन टिक्का मसाला इंग्लैंड का राष्ट्रीय व्यंजन है और अंतरराष्ट्रीय हस्तियां दुनियाभर में भारतीय रेस्तरां की ओर रुख कर रही हैं, तो इसमें आश्चर्य नहीं। आज भारतीय व्यंजन अंतरराष्ट्रीय रसोइयों में अपनी खुशबू बिखेर रहे हैं। हो भी क्यों न, हमारे देश के कोने-कोने में स्वादिष्ट व्यंजनों की भरमार है। कोस कोस पर बानी बदलने वाली बात तो प्रसिद्ध है ही मगर यहां हर किलोमीटर में मिलने वाला स्वादिष्ट भोजन तो जगप्रसिद्ध है। जिस प्रकार अंतरराष्ट्रीय आम महोत्सव हर जगह आयोजित किया जाता है ठीक वैसे ही मसालों से भरपूर भारत का स्ट्रीट फूड हर जगह मशहूर है। मुगलई, अवधी, दक्षिण भारतीय, बंगाली, पंजाबी... गिनने को अंगुलियां कम पड़ जाएंगी।

रिकार्ड में दर्ज हो रही विरासत

भारत की जी-20 अध्यक्षता के तहत ‘कल्चर यूनाइट्स आल’ की प्रमुख पहलों में से एक में संस्कृति  कार्य समूह ने ‘लंबानी कला की वस्तुओं के सबसे बड़े प्रदर्शन’  कर गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड बनाया। इसमें लगभग 450 महिला शिल्पकारों के प्रयास शामिल थे, जिन्होंने लंबानी कढ़ाई वाले 1,755 से अधिक पैच बनाए। यहां तुंगभद्रा के तट पर मौजूद 14वीं शताब्दी के विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हंपी में प्रसिद्ध विरुपाक्ष मंदिर के करीब येदुरु बसवन्ना परिसर में इस सुंदर कला को तैयार किया गया था। लंबानी पैचवर्क कढ़ाई में भारत की कई पारंपरिक टिकाऊ जीवित विरासत प्रथाओं का उदाहरण प्रस्तुत किया गया, जो भारत के जी-20 संस्कृति कार्य समूह की ‘जीवन के लिए संस्कृति’  पहल के साथ मेल खाती है।

साहित्य के रस में डूबी दुनिया

भारत ने दुनिया और जी-20 के सदस्यों पर अपने साहित्य से एक और गहरी सांस्कृतिक छाप छोड़ी है। यहां भी वही बात लागू होती है कि देशभर में 30 से अधिक भाषाओं और कई बोलियों में साहित्य की विशाल विविधता मौजूद है। लगभग 20 वर्ष में देश के 100 से अधिक शहरों और कस्बों में साहित्य महोत्सव शुरू हो चुके हैं। इनमें से कई के तो अब अंतरराष्ट्रीय संस्करण भी हैं जहां अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं दोनों में सर्वश्रेष्ठ भारतीय लेखन को सम्मानित किया जाता है। यदि अरुंधति राय, विक्रम सेठ, अमिताभ घोष, रोहिंटन मिस्त्री, चित्रा दिवाकरुनी जैसे भारतीय लेखकों की सफलता ने वास्तव में अंग्रेजी को भारतीय भाषा बना दिया है, तो गीतांजलि श्री की ‘टूम आफ सैंड’ को बुकर पुरस्कार मिलना सम्मान की बात है। इसमें कोई दोराय नहीं कि रवींद्रनाथ ठाकुर, प्रेमचंद आदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की साहित्यिक उपलब्धियों के अग्रणी हैं। 

दुनिया नाप रहा सिनेमा का पहिया

और फिर हाल के दिनों में भारत का सबसे बड़ा सांस्कृतिक निर्यात है- सिनेमा। यदि राज कपूर 1950 में सीमाओं के बंधन तोड़कर रूसी सिनेप्रेमियों के दिल में बस गए, तो भारतीय सितारे अब कई महाद्वीपीय देशों के साथ-साथ मध्य पूर्व में भी लोकप्रिय हैं। हिंदी सिनेमा की लोकप्रियता में आई इस उछाल का संबंध इसके गानों से भी है। जहां एक समय में ‘मेरा जूता है जापानी’ सोवियत संघ में गूंजता था, वहीं आज ‘जय हो’ और ‘नाटु नाटु ‘ ग्रैमी और आस्कर के मंच तक पहुंच चुके हैं और शीर्ष अंतरराष्ट्रीय सितारों को अपनी धुन पर नचा रहे हैं।

(लेखक संस्कृतिकर्मी हैं)





 This article was published in Dainik Jagran on 03.09.23

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