हम राजस्थानी • गुलाबी शहर में आयोजनों की बहार
जनवरी में संस्कृति-साहित्य की ऊंचाई छू लेता है जयपुर
गणतंत्र दिवस समारोह में अपनी विशिष्ट उपस्थिति से एक दिन पूर्व 25 जनवरी को फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने जयपुर का उत्सवी रंग देखा। उनके राजसी स्वागत में जयपुर जगमगा उठा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ गणमान्य अतिथियों ने गुलाबी शहर में आयोजित रोड शो में हिस्सा लिया, जो विरासत के संरक्षण के संदेश के साथ-साथ भारत और फ्रांस के बीच दोस्ती व सहयोग के मजबूत बंधन का प्रतीक बना। जंतर-मंतर से सांगानेरी गेट के बीच आयोजित यह अनूठा रोड शो महज राजनयिक घटना नहीं बल्कि फ्रांस और भारत के बीच साझा सांस्कृतिक लोकाचार का उत्सव था।
मैक्रों की यह महत्वपूर्ण यात्रा भारत-फ्रांस के बीच रणनीतिक साझेदारी की 25वीं वर्षगांठ समारोह के प्रमुख आयोजनों में से एक थी, जो दोनों देशों के बीच स्थायी संबंधों और साझा मूल्यों को उजागर करती है।
गौरतलब है कि परमाणु परीक्षण के बाद 1998 में फ्रांस ने भारत का पक्ष लिया था। भारत में अपनी दो दिवसीय यात्रा के पहले दिन जब मैक्रों जंतर-मंतर पहुंचे... उनके कदमों की आहट उन पीढ़ियों के कदमों की गूंज थी जो इसकी दीवारों के भीतर मौजूद खगोल विज्ञान के चमत्कार को देखकर आश्चर्यचकित हो चुके हैं। मैक्रों ने हवा महल और आमेर किले जैसे स्थापत्य रत्नों का भी दौरा किया। उनके दौरे और रोड शो के लिए जयपुर को चुना गया क्योंकि जयपुर की खूबसूरती जनवरी और फरवरी में अपने शिखर पर होती है। सिर्फ मौसम के ही लिहाज से नहीं, बल्कि आयोजनों, त्योहारों और सांस्कृतिक समारोहों की वजह से जयपुर एक रंगीन कैनवास में बदल जाता है। इसीलिए लोग गुलाबी शहर को देश के सांस्कृतिक स्वर्ग का दर्जा देते हैं। अपने ऐतिहासिक आकर्षण की धरोहर के साथ-साथ, यह शहर साहित्यिक और कलात्मक प्रयासों से भी गुलजार है। इसका चश्मदीद गवाह है जयपुर लिटरेचर फेस्टीवल, पिछले 16वर्षों से जिसकी मेजबानी जयपुर करता आ रहा है। भले ही जनवरी की तारीखों से खिसकते हुए साहित्य का यह महाकुंभ इस साल फरवरी के पहले हफ्ते में आयोजित हो रहा है, लेकिन हर साल यह दुनियाभर से साहित्य प्रेमियों को खींच लाने के नए रिकॉर्ड बनाता आया है। जनवरी तो जैसे जयपुर के ही नाम लिख दिया गया है। यहां का सांस्कृतिक उत्सव केवल किताबों के पत्रों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि जीवंत सड़कों पर फैला हुआ है। इस महीने में विविध आयोजनों के बीच पोलो और गोल्फ टूर्नामेंट भी होते हैं, जो शहर के सांस्कृतिक परिदृश्य में एक गतिशील कड़ी जोड़ते हैं। वर्ष 1727 में बसा यह शहर सिर्फ आयोजनों की मेजबानी नहीं करता बल्कि उन्हें यादगार अनुभवों के मनकों में पिरो देता है। यहां की पतंगबाजी भी बहुत मशहूर है। मकर संक्रांति पर नीले आसमान पर रंग-बिरंगी पतंगों की कशीदाकारी होती है तो रात को आतिशबाजी की जरी से वही नीला आसमान सज जाता है। तिल और गुड़ के जायके और पौष बड़े गुलाबी ठंड के मौसम में जायके की जादूगरी दिखाने लगते हैं।
अपनी समृद्ध सांस्कृतिक और खेल-शैली के अलावा जयपुर जनवरी के महीने में मनोरंजन और उत्सव के एक विविध केंद्र में बदल जाता है। यह ऐतिहासिक शहर परंपरा और आधुनिकता के मिश्रण को अपनाते हुए, जिफ व रिफ जैसे फिल्म समारोहों के साथ सिनेमाई कलाओं को फलने-फूलने के लिए एक मंच देता है। वहीं विरासत से वर्तमान को जोड़ती हुई सालाना विंटेज कार रैली क्लासिक ऑटोमोबाइल की शानो-शौकत व रिवायत को शहर की रगों में फिर से दौड़ने का मौका देती है। इसके अलावा, संगीत समारोह भी रागों और साजों के साथ शहर की आबोहवा में गूंजने की पैरवी करते हैं। जयपुर सचमुच भारत की धरोहर, संस्कार और मेहमान नवाजी को दिखाने का एक सबसे उपयुक्त शहर है, बल्कि दृश्यों और अनुभवों का भी खजाना है।
( ये लेखक के अपने विचार हैं)
( जनवरी तो जैसे जयपुर के ही नाम लिख दिया गया है। यहां का सांस्कृतिक उत्सव केवल किताबों तक ही सीमित नहीं है, इस महीने में पोलो और गोल्फ टूर्नामेंट भी होते हैं जो सांस्कृतिक परिदृश्य में एक गतिशील कड़ी जोड़ते हैं।)
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