Speech given the Indira Gandhi National Centre for the Arts (IGNCA) during an exclusive conversation on A Zig Zag Mind, the book by Padma Vibhushan Dr. Sonal Mansingh.
इस गरिमामय समारोह के प्रमुख अतिथि व हमारे महान भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी, माननीय अतिथि राष्ट्रीयस्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले जी, इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के सदस्य सचिव डॉ.सच्चिदानंदजोशी जी और समारोह की उत्सवमूर्ति और अपने जीवन-काल में ही किंवदंती बन चुकीं भारतीय शास्त्रीय की महान नृत्यांगनाडॉ. सोनल मानसिंह जी, जिनकी पुस्तक पर यह समारोह केन्द्रित है।
यह महत्वपूर्ण ग्रंथ ‘ए ज़िगज़ैग माइंड’ डॉ. सोनल जी के अनुपम जीवन के कला अनुभवों का मनमोहक संग्रह है। यह पुस्तकअपनी जीवन यात्रा को कैसे खूबसूरत बनायें और जीवन के सौंदर्य को कैसे देखें यही नहीं सिखाती बल्कि, उसमें निहित रस काआनंद कैसे लें, उदात्त का दर्शन कर कैसे अपने जीवन को सार्थक बनायें यह मार्ग भी दिखाती है। यह पुस्तक एक कलाकार कीसरस अभिव्यक्ति है, जिसमें वह अपने गहन चिन्तन और अद्वितीय कला अनुभवों को भी साझा करता है। डॉ. सोनल जी नेआरम्भिक दौर में कविताएं लिखीं थीं। उनकी काव्यात्मकता की छाप उनके पूरे व्यक्तित्व का हिस्सा है। इस पुस्तक में शामिललेखों की भाषा में भी काव्यात्मकता है, जो इन्हें पठनीय तो बनाती ही है, अपनी संवेदनशीलता के कारण पाठक के दिल परअपनी अमिट छाप भी छोड़ जाती है।
उन्होंने एक अखबार में काफी अरसे तक पाक्षिक स्तम्भ लिखा था। वे लेख ‘ए ज़िगज़ैग माइंड’ जैसी एक अनुपम कृति के रूपमें हमारे सामने हैं। यह कृति प्रेरणादायक भी है और ज्ञान से परिपूर्ण भी। इसमें भारतीय ज्ञान परम्परा की अद्वितीयता के दर्शनहोते हैं। इन लेखों में उन्होंने भारत की वैविध्यपूर्ण विशेषताओं और विलक्षणता पर प्रकाश डाला है। इस ग्रंथ को पढ़ने के बादहम पाते हैं कि डॉ. सोनल मानसिंह एक महान नृत्यांगना ही नहीं, भारतीय पौराणिक कथाओं की भी विदुषी हैं। पौराणिक पात्रोंपर इनका दृष्टिकोण पश्चिम की नारीवादी अवधारणा से अलग है। उनके लेख हमें भारतीय संस्कृत में महिलाओं की महत्वपूर्णभूमिका की याद दिलाते हुए प्राचीन भारतीय समाज में महिलाओं की गरिमामयी स्थिति को दर्शाते हैं। इस पुस्तक में गुरु-शिष्यपरंपरा से लेकर कृष्ण लीला, सप्त नदी, राधा, द्रोपदी, तुलसीदास की रामकथा आदि विषयों पर उन्होंने प्रकाश डाला गया है।ये लेख हमारी सांस्कृतिक परम्परा में हमारे शक्ति केन्द्रों व उर्जा स्रोतों को चिह्नित करते हैं, वहीं नृत्यकला में गहन अभिरुचिरखने वालों को कई ऐसे गुर सिखाते हैं, जो कलासाधना की सिद्धि के मूलमंत्र हैं। गुरु-शिष्य परम्परा, एक शास्त्रीय नर्तक कानिर्माण से जुड़ी छोटी से छोटी बात, नृत्य में रचनात्मकता के तत्त्व, कृष्ण-लीला की साक्षी यमुना, नर्मदा की कथा, गोदावरीजैसे लेखों में हमारी अनमोल सांस्कृतिक विरासत का नवनीत विद्यमान है।
शिव के नृत्य पर अपने एक लेख में कहती हैं कि नृत्य में सभी कलाएं, ज्ञान, योग और जीवन की परिस्थितियाँ प्रतिबिंबित होतीहैं। नृत्य को केवल कला नहीं, बल्कि जीवन को समझने और जीने का माध्यम है, जो शारीरिक, मानसिक और आत्मिकसंतुलन देता है। भगवान शिव को ‘नटराज’ के रूप में नृत्य का देवता माना गया है, जिनकी मूर्ति ऊर्जा, संतुलन और सृष्टि कीजटिलताओं का प्रतीक है।
लेख "Secularism in Indian Performing Arts" में कहती हैं-भारत के शास्त्रीय नृत्य और संगीत में धर्मनिरपेक्षता कासबसे सजीव और समावेशी रूप देखने को मिलता है। भारत में विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और परंपराओं का संगम हजारों वर्षोंसे होता आया है, जिससे यह भूमि एक सांस्कृतिक मिलन स्थल बन गयी। एक लेख में भारत की सप्तनदियों की उत्पत्ति कीगाथा कहते हुए उनके सांस्कृतिक महत्व को भी रेखांकित करती हैं। धार्मिक अनुष्ठानों में सात पवित्र नदियों गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और कावेरी का आवाहन मंत्रों द्वारा किया जाता है। गंगा द लोकमाता में वे कहती हैं हर नदीगंगा कही जा सकती है क्योंकि सभी जीवन को पोषण देती हैं। गंगा के स्वर्ग से धरती पर अवतरण की कथा का उल्लेख करतेहुए वे कहती हैं कि यह कथा प्रतीकात्मक रूप से बताती है कि पर्वतों और वनों का संरक्षण आवश्यक है क्योंकि वे वर्षा औरजल के संतुलन में सहायक होते हैं। नदियां लोकमाता इसलिए हैं क्योंकि वे जीवन, कृषि, वन और संपूर्ण पृथ्वी को पोषणदेती हैं और मानव जीवन चक्र की तरह उनका भी एक सतत प्रवाह होता है। मिथकीय चरित्रों पर इस पुस्तक में उनके कई लेखहैं, जिन्हें उन्होंने अपने स्तर पर परिभाषित किया है और उनके बारे में सोचने की नयी दृष्टि दी है। वे कहती है-राधा केवल कृष्णकी प्रेयसी नहीं थीं, बल्कि वे स्त्रीत्व की पराकाष्ठा, सौंदर्य, कोमलता, विवेक और प्रेम की प्रतीक थीं। राधा को देवी की तरहपूजा गया, जबकि वे देवी पार्वती या लक्ष्मी की तरह शास्त्रों में वर्णित नहीं हैं, फिर भी वे भारतीय सांस्कृतिक चेतना का अभिन्नहिस्सा बन चुकी हैं। कृष्ण के साथ उनका प्रेम सांसारिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक है।
द्रोपदी के बारे में वे कहती हैं कि वे एक पौराणिक पात्र नहीं, बल्कि चेतना, प्रकृति और नारी शक्ति का जीवंत प्रतीक हैं, जिनकी पीड़ा, गरिमा और विद्रोह प्रेरक है। द्रोपदी अपमान और अन्याय के खिलाफ खड़ी होती हैं, चाहे वह जुए में हारने कीघटना हो या सभा में चीरहरण। द्रोपदी प्रकृति शक्ति की प्रतिनिधि हैं। जब इस शक्ति का अपमान होता है, तो उसकापरिणाम विनाशकारी होता है। सोनलजी की दृष्टि में कृष्ण केवल एक पौराणिक देवता नहीं, बल्कि बहुआयामी व्यक्तित्व केधनी हैं, जो हर वर्ग और दृष्टिकोण से अलग-अलग रूपों में अनुभव किए जा सकते हैं। कृष्ण ‘हरि’ हैं, जो हर प्रकार कीनकारात्मकता को हर लेते हैं। तुलसीदास रचित रामकाव्य के विषय में कहती हैं जिस समय अकबर का साम्राज्य फैला हुआथा, तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की, जो वाल्मीकि रामायण से अलग थी और उस समय के सामाजिक-सांस्कृतिकपरिवेश को प्रतिबिंबित करती थी। तुलसीदास की रामायण में राम को ईश्वर के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जबकि वाल्मीकिकी रामायण में राम एक मानव नायक हैं। राम और सीता की कथा आज भी लोगों के मन में आध्यात्मिक जागरूकता का संचारकरती है।
इस पुस्तक में डॉ.सोनल जी ने अपने जीवन अनुभवों व अपनी कला यात्रा के मुख्य आधारों व नाट्य तथा नृत्य कला पर अपनाअनूठा दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। पुस्तक के आत्मकथात्मक अंश निजी होते हुए भी सबको प्रेरित करने वाले हैं। इसी क्रम में1974 में जर्मनी में एक कार दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होने का प्रसंग भी है। दुर्घटना में उनकी रीढ़ की हड्डी की बारहवींडिस्क पूरी तरह चकनाचूर हो गयी थी, बाईं ओर की चार पसलियाँ भी टूटी गयी थीं और दोनों कॉलर बोन भी टूट चुकी थीं।मीडिया जगत में आशंका जतायी जाने लगी थी कि उनका डांसिंग करियर लगभग समाप्त हो जायेगा। डॉक्टरों ने उनको नृत्य सेमना कर दिया और फिजियोथेरापी का सुझाव दिया था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने फिर से मंच पर उत्साहवर्धकवापसी कर दुनिया को चौंका दिया। यह कहानी आत्मबल और उनके पुनर्जन्म की प्रेरक कहानी है। वे लिखती हैं मैं ‘द्विजा हूँ।मैंने दो बार जन्म लिया है।’ इस घटना का विस्तार से वर्णन इस पुस्तक में है, जिससे लोगों को यह प्रेरणा मिलेगी कि दृढ़मानसिक संकल्प और आध्यात्मिक आस्था से जीवन की सबसे बड़ी विपत्तियों से उबरा जा सकता है।
पद्म विभूषण डॉ.सोनल मानसिंह जी को उनकी कलासाधना के लिए मैं उन्हें प्रणाम करता हूं और अपने जीवन दर्शन को पुस्तकके रूप में सुलभ कराने के लिए मैं असंख्य पाठकों की ओर से कृतज्ञता भी ज्ञापित करता हूँ। इस समारोह में मुझे विशिष्टअतिथि के रूप में वक्तव्य देने के लिए आमंत्रित करने हेतु मैं इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के कर्ताधर्ताओं के प्रति भी आभारीहूँ।
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